- सरकार और किसान संगठनों के बीच सार्थक वार्ता की जरूरत है ताकि किसानों की समस्याओं का समाधान निकाला जा सके.
- किसान चाहते हैं कि सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार करे, जिसमें सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, बीजों की गुणवत्ता में सुधार, खाद और कीटनाशकों के दामों को नियंत्रित करना, भंडारण सुविधाओं में सुधार और फसल बीमा योजनाओं में बदलाव शामिल है.
- किसानों पर कर्ज का बोझ बहुत अधिक है, इसलिए वे कर्ज माफी या कम से कम कर्ज राहत की मांग कर रहे हैं.
- किसान चाहते हैं कि सरकार एमएसपी को कानूनी रूप से गारंटी दे ताकि उन्हें फसलों का उचित दाम मिल सके.
भारतीय कृषि, देश की रीढ़ मानी जाती है. लेकिन पिछले कुछ दशकों में किसानों की बदहाली की खबरें भी खूब सामने आई हैं. 2020-21 में तो किसानों का आंदोलन देश भर में चर्चा का विषय बना रहा. अब 2024 में फिर से किसानों का आंदोलन सुर्खियों में है. पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्यों से शुरू हुआ ये प्रदर्शन अब देशभर में फैलने की आशंका जताई जा रही है.
आखिर 2024 में दोबारा सड़कों पर उतरने को मजबूर क्यों हुए किसान? उनकी मूलभूत मांगें क्या हैं? और सरकार किसानों की इन चिंताओं का कैसे समाधान निकालने की कोशिश कर रही है, आइए इन सवालों के जवाब ढूंढते हैं.
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी: किसानों की प्रमुख मांग
किसान संगठनों की सबसे बड़ी मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी रूप से गारंटी देना है. MSP सरकार द्वारा निर्धारित वह न्यूनतम मूल्य होता है, जिस पर सरकार ख़ुद किसानों से फसल खरीदती है. यह मूल्य उत्पादन लागत से अधिक रखा जाता है ताकि किसानों को उनकी फसल का उचित दाम मिले और उन्हें घाटा ना उठाना पड़े.
हालांकि, मौजूदा व्यवस्था में MSP सिर्फ कुछ ही फसलों के लिए तय होता है. साथ ही, सरकार द्वारा बाज़ार में सीधे तौर पर कम ही खरीददारी की जाती है. इससे खुले बाज़ार में फसलों के दाम अक्सर MSP से नीचे चले जाते हैं, जिससे किसानों को भारी नुक़सान होता है.
किसान संगठन चाहते हैं कि MSP को सभी प्रमुख फसलों के लिए लागू किया जाए और साथ ही, सरकार बाज़ार में हस्तक्षेप कर यह सुनिश्चित करे कि किसानों को उनकी फसल का हमेशा MSP या उससे अधिक दाम ही मिले.
कर्ज माफी या राहत की मांग: किसानों पर कर्ज का बोझ
भारतीय किसान जमींदार होकर भी कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं. प्राकृतिक आपदाओं, फसल ख़राब होने और अस्थिर बाज़ार व्यवस्था के चलते किसानों पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है. कई बार तो परिस्थितियां इतनी विकट हो जाती हैं कि कर्ज चुका पाना किसानों के लिए नामुमकिन हो जाता है.
इसलिए, किसान संगठन सरकार से कर्ज माफी या कम से कम कर्ज राहत की मांग कर रहे हैं. उनकी मांग है कि सरकार बैंकों को निर्देश दे कि वे किसानों के कर्ज माफ करें या फिर ब्याज दरों में कटौती कर उन्हें राहत प्रदान करें.
आय में बढ़ोत्तरी की मांग: मनरेगा से बढ़िया रोजगार की आस
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी दी जाती है. लेकिन किसान संगठनों का कहना है कि मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी बेहद कम है, जिससे ग्रामीण परिवारों का गुज़ारा चलाना मुश्किल हो जाता है.
इसलिए, किसान संगठन मनरेगा के तहत दी जाने वाली मजदूरी में बढ़ोत्तरी की मांग कर रहे हैं. साथ ही, उनकी मांग है कि सरकार ऐसी व्यवस्था लागू करे जिससे किसानों को फसल उत्पादन लागत से ऊपर एक न्यूनतम लाभ की गारंटी मिल सके.
अन्य मांगें: बीजों की गुणवत्ता और कृषि से जुड़ीं धोखाधड़ी पर रोक
किसान संगठनों की अन्य प्रमुख मांगों में शामिल हैं:
- बीजों की गुणवत्ता में सुधार: बाज़ार में घटिया किस्म के बीजों की भरमार है. नकली बीजों के इस्तेमाल से फसल उत्पादन कम होता है, जिससे किसानों को भारी नुक़सान होता है. किसान संगठन सरकार से मांग कर रहे हैं कि वह बीजों की गुणवत्ता पर सख्त नियम लागू करे और नकली बीजों की बिक्री पर रोक लगाए.
- खाद और कीटनाशकों पर नियंत्रण: खाद और कीटनाशकों के दाम लगातार बढ़ रहे हैं, जिससे किसानों की उत्पादन लागत बढ़ जाती है. साथ ही, बाज़ार में मिलावटी खाद और कीटनाशक भी आसानी से मिल जाते हैं, जिनका इस्तेमाल फसलों के लिए हानिकारक होता है. किसान संगठन खाद और कीटनाशकों की कीमतों को नियंत्रित करने और उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने की मांग कर रहे हैं.
- भंडारण सुविधाओं में सुधार: फसल कटाई के बाद भंडारण की उचित व्यवस्था न होने के कारण भी किसानों को भारी नुक़सान उठाना पड़ता है. खराब मौसम या भंडारण की कमी के चलते कई बार किसानों को औने-पौने दाम में फसल बेचनी पड़ती है. इस समस्या से निपटने के लिए किसान संगठन सरकार से आधुनिक भंडारण गृहों के निर्माण की मांग कर रहे हैं.
- फसल बीमा योजनाओं में सुधार: फसल बीमा योजनाओं का उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुक़सान की भरपाई करना है. लेकिन किसान संगठनों का आरोप है कि मौजूदा फसल बीमा योजनाएं किसानों के हित में नहीं हैं और बीमा क्लेम मिलने में भी बहुत देरी होती है. किसान संगठन फसल बीमा योजनाओं में व्यापक सुधार की मांग कर रहे हैं.
सरकार का रुख: वार्ता की कोशिशें और आशंकाएं
सरकार ने किसानों की मांगों को लेकर कुछ कदम उठाए हैं. सरकार ने 2024-25 के बजट में कृषि क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ाया है. साथ ही, कुछ फसलों के लिए MSP में बढ़ोत्तरी की घोषणा भी की गई है.
हालांकि, किसान संगठन इन कदमों को नाकाफी मानते हैं. MSP को कानूनी रूप से गारंटी देने की मांग को लेकर सरकार अभी तक पीछे हटी हुई है. सरकार का कहना है कि इससे सरकारी खज़ाने पर बोझ बढ़ जाएगा और बाज़ार व्यवस्था में भी गड़बड़ी पैदा हो सकती है.
किसानों के इस प्रदर्शन को लेकर सरकार को आशंका है कि यह आने वाले लोकसभा चुनावों (2024) से पहले सरकार की छवि को खराब कर सकता है. दूसरी तरफ, किसान संगठन भी पीछे हटने के मूड में नहीं दिखाई दे रहे हैं. उनका कहना है कि जब तक उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाता, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा.
आंदोलन का देश पर असर: रोज़मर्रा की जिंदगी पर असर पड़ने की आशंका
पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्यों से शुरू हुआ ये किसान आंदोलन अब देश के अन्य हिस्सों में भी फैलने की आशंका है. इससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ सकता है.
खासकर, खाद्य आपूर्ति पर इसका सीधा असर पड़ने की संभावना है. आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोत्तरी हो सकती है. साथ ही, निर्यात पर भी असर पड़ सकता है.
इसके अलावा, आंदolan के कारण रोज़मर्रा की जिंदगी भी प्रभावित हो सकती है. परिवहन सेवाएं बाधित होने से लोगों को आने-जाने में दिक्कतें हो सकती हैं.
उदाहरण के तौर पर, 2020-21 के किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली की सीमाओं पर लगे भारी जाम के कारण लोगों को काफी परेशानी हुई थी.
हालांकि, सरकार और किसान संगठनों के बीच बातचीत का सिलसिला जारी है. उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही कोई ठोस समाधान निकल आए, जिससे किसानों की समस्याओं का समाधान हो सके और देश की अर्थव्यवस्था को भी नुक़सान ना पहुंचे.
विपक्षी दलों का रुख: किसानों के साथ दिखाने की कोशिश
देश के मौजूदा राजनीतिक माहौल में विपक्षी दल इस किसान आंदोलन को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. वे किसानों के बीच जाकर उनकी मांगों का समर्थन कर रहे हैं और सरकार की नीतियों की आलोचना कर रहे हैं.
विपक्ष का कहना है कि सरकार किसानों की समस्याओं की तरफ ध्यान नहीं दे रही है, जिसके कारण उन्हें फिर से सड़कों पर उतरना पड़ा है. विपक्षी दल इस मुद्दे को 2024 के लोकसभा चुनावों में भी प्रमुखता से उठाने की तैयारी कर रहे हैं.
राहत का रास्ता: संभावित समाधान
किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए सरकार और किसान संगठनों के बीच सार्थक वार्ता की ज़रूरत है. कुछ संभावित समाधान इस प्रकार हो सकते हैं:
- MSP पर सहमति: सरकार MSP को लेकर किसानों के साथ किसी ठोस सहमति पर पहुंच सकती है. उदाहरण के लिए, कुछ फसलों के लिए MSP को कानूनी रूप से गारंटी देने पर विचार किया जा सकता है या फिर यह सुनिश्चित करने के लिए कोई ठोस व्यवस्था बनाई जा सकती है कि किसानों को हमेशा MSP से कम दाम पर फसल न बेचनी पड़े.
- कर्ज राहत योजनाएं: सरकार किसानों के कर्ज बोझ को कम करने के लिए विभिन्न राहत योजनाएं लागू कर सकती है. इसमें बैंकों के साथ मिलकर किसानों के कुछ ऋणों को माफ करना या फिर ब्याज दरों में कटौती करना शामिल हो सकता है.
- कृषि क्षेत्र में सुधार: सरकार को कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधारों की ज़रूरत है. इसमें सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, बीजों की गुणवत्ता में सुधार, खाद और कीटनाशकों के दामों को नियंत्रित करना, भंडारण सुविधाओं में सुधार और फसल बीमा योजनाओं में व्यापक बदलाव जैसे कदम शामिल हो सकते हैं.
- किसान संगठनों के साथ संवाद: सरकार को किसान संगठनों के साथ नियमित रूप से संवाद बनाए रखना चाहिए. इससे किसानों की समस्याओं को समझने में आसानी होगी और उनका समाधान भी जल्दी निकाला जा सकेगा.
किसान आंदोलन एक जटिल मुद्दा है. इसका समाधान सिर्फ सरकारी नीतियों से ही नहीं हो सकता. इसके लिए किसानों, सरकार और कृषि क्षेत्र से जुड़े सभी हितधारकों के बीच आपसी सहयोग की ज़रूरत है. तभी जाकर भारतीय कृषि को मजबूत बनाया जा सकता है और किसानों की आय भी बढ़ाई जा सकती है.